दुर्मिल सवैया
दुर्मिल सवैया
जब प्रीति जगी अति प्यार मिला , तब हर्ष हुआ, मधु भाव पगा ।
तब ईश दिखे भव पार हुआ, मन में उजियार विचार जगा।
यह जीवन का उपहार अपार,मिला अँधियार तुरन्त भगा।
मन शांत हुआ सब भ्रांति मिटी, सुख-चैन मिला दिल प्रेम रंगा।
जब जीवन में अनुराग मिले, अति स्नेहिल वारिश होय यदा।
जब प्रीति लोभाय पिया तन को, अपने कर से सहलाय सदा।
जब प्रीति बसे पिय के हिय में, निकले न कभी सुख देय सदा।
तब प्रेम प्रकोष्ठ प्रशांत बने,खुश पंकज भाव खिले उमदा।
जब जीवन होय अछूत निरा,नहिं प्यार मिले शिशु पावन को।
नहिं मात-पिता मनरक्षक होय,प्रताड़न देत बिगाड़न को।
शिशु दीन बना विचरा जग में,बिन भोजन घूमत गाँवन को।
यह देख दशा दुख होत सदा, बिन प्रीति कुपोषित लालन को।
जिस जीवन को नहिं प्रेम मिला, वह जीवन सार्थक है न कभी।
जब जीवन को अति मान मिले, तब जीवन सार्थक होय तभी।
वह मानव हो खुशहाल तभी,जब प्रेम-सुपात्र कहे जग भी।
यदि लालन-पालन में शुचिता,तब प्रेम मुकुंद बने मन भी।
Renu
23-Jan-2023 06:33 PM
👍👍🌺
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